छोटे बेटू के आखों में
कुछ सवाल थे
कुछ होंगे कहानी वाले
मेरे ये खयाल थे ............
नन्हे नन्हे आखों में ..
कुछ अदभुत सी रोशनी थी ....
पन्ने पलट ते रहे पलट ते रहे.............
आखिर में मै बी कुछ देर
स्तब्ध थी ................................................
माँ हिंसा और नफरत की "माँ " कौन है ?????????
है कहा उसका घर ??/
जाट पात , मंदिर मस्जिद .....
है बस नफरत ही नफरत
क्यों इसकी यही पहचान है ????????/
माँ हिंसा और नफरत की " माँ " कौन है ???????????
बैर का जवाब बैर ही
क्यों होता है........????
ना सुकून ना शांति ..
फटी सपनो की चादर में
वो रोज़ क्यों सुलगता है ...???????
बैर के गले में शांति की माला ...
सोचो कितना सुकून है ........
माँ हिंसा और नफरत की " माँ " कौन है..??????
माँ ,
धर्मो के मसीहा से
मै भारत का भविष्य .....मेरा सवाल है................
दुनिया अगर रंगमंच ....
हम सारे खिल्लोने
बैर के बदले चुटकी भर
प्रेम भर दे
हर इन्सान में ....
ना कोई खून खराबा ना कोई शिकवा
ना कोई मन्नत होगी
तेरे आगन में ..........!!!
very nice nandini ji....aapne bahut acha likha hai mujhe kavita ki jyada jaankari to nahi hai lekin aapki kavita ne dil ko choo liya...too nice ji..
ReplyDeleteइन मासूम सवालात को सलाम....
ReplyDeleteइन सवालों का एक ही जवाब है दी.... मुहब्बत....
दुनिया के तमाम अमन पसंद अफ़राद मुहब्बत के बीज बोने में लगे हैं...
नफरत और हिंसा की आग उसे झुलसाने में कभी कभी कामयाब भी हो जाती है....
लेकिन जीत तो मुहब्बत की तय है दी....
एक बहुत ही जिम्मेदार रचना के लिए बधाई स्वीकारें....
regards...
दर्द को भी दर्द होने लगा
ReplyDeleteदर्द खुद ही मेरे घाव धोने लगा
दर्द के लिए मैं न रोया
लेकिन दर्द मुझे छू कर खुद रोने लगा ....
मै इसके आगे कुछ नहीं कह पाउँगा प्रिये....आपकी कविता को पढ़ के मै निःशब्द हो गया हूँ
good....really a good creation....
ReplyDeleteहै ज्वलंत प्रश्न इनसे आंख ना चुराइए
ReplyDeleteआज मन कि पीडावों के स्वर भी लेते जाइये
आज मन कि पीडावों के स्वर भी लेते जाइये
आज मन कि पीडावों के स्वर भी लेते जाइये
हर हर महादेव
माँ हिंसा और दर्द की माँ कौन है ,,,,,,,,एक मासूमियत भरा सवाल , जिसका जवाब डे पाना बड़ा ही मुस्किल है अति सुंदर रचना लिखी आपने नंदिनी jii
ReplyDeletenice !
ReplyDeleteDil ko choo lene wali kavitayen likhti hain aap......!
ReplyDeleteIts a heart touching poem like all ur poems. I'm proud of u Nandini my little sis.
ReplyDeleteUr bro.....Bikram
नाना कहते हैं - तेरी माँ की माँ
ReplyDeleteभी एक परी थी .
चुपचाप उतर आई थी एक दिन
आंगन में - और ये घर
बन गया था उनकी कल्पनाओं
का परीलोक.
माँ कहती है -
पापा एक दिन -चुरा लाये थे
उन्हें सबकी नजर से छुपकर.
और फिर चाँद तारों की
दुनिया छोड़ कर -
उतर आई थी तू -मेरे आंचल में.
भैया -ऊँगली पकड़ कर
मुझे -चलने का हुनर सिखलाता है
अभी छोटी हूँ ना - मुझे चलना कहाँ आता है .
हर कोई मुझे -यूँ ही बहलाता है .
पापा कहते हैं - तू परी है
बहूत दूर से आयीं है -
मैं जानती हूँ -सब झूठ बोलते हैं .
भैया सच कहता है - माँ मुझे
डाक्टर आंटी के घर से लायी है .
(अपनी ३ वर्षीय नातिन नंदिनी को समर्पित)
ncie dear your blog
ReplyDeletevery nice
ReplyDelete.
ReplyDeleteबैर के बदले चुटकी भर
प्रेम भर दे
हर इन्सान में ....
ना कोई खून खराबा ना कोई शिकवा
वाह वाऽऽह ! बहुत ख़ूबसूरत लिखा है… बधाई !
…और छोटे बेटू के मासूम सवाल भीतर तक रोमांचित कर रहे हैं …
आदरणीया नंदिनी पाटिल जी आपने सचमुच बहुत उत्कृष्ट लिखा है ।
आपकी अन्य रचनाएं भी पढ़ीं …अच्छी लगीं ।
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
रक्षाबंधन और स्वतंत्रता दिवस की मंगलकामनाओ के साथ
-राजेन्द्र स्वर्णकार
ohhhh ye masumiyat aur bholepan main kiye sawal na jane aise jawabon ko kyun khoj rahe hain.....
ReplyDeleteye jawab khud nahi kisi par.....
masum sa sawal bahut kuch keh gayaa bahut accha likha hai.....
satik aur sarthak.....:)