उठ हे भारतवासी ,तुम्हें अब सोने न दूंगी ॥
कविता के शब्दो से क्रांति तुममें मै भर दूंगी ...
न घबरा, ढलती आशाओं के आगे ,
टूटे पंखों में अतल उम्मीद मै भर दूंगी...
बेईमानी के पक्षधर बाँहें फैलाए है ॥
राजनीति के मीठे फल तो, कदम कदम पे सजाये है॥
कल्पना की मीठी गोद में , विपत्ति मै न होने दूंगी ॥
उठ हे भारतवासी ,तुम्हें अब सोने न दूंगी॥तोड़ दे मन की परतंत्रता ,कभी स्वतंत्र बन के जीले ॥
स्वाभिमान का मीठा फल एक बार तू चख ले...
हथियारो के जंगल में तुम्हें , खिलौना बनने न दूंगी...
उठ हे भारतवासी , तुम्हें अब सोने न दूंगी...
कुर्सी के आगे तुम्हें बिंदु नहीं बनना है.....
उठो, जागो सिन्धु बन के उन्हें मिटाना है ॥
चुनाव ,महगाई ,बंद , मोर्चे में ... तुम्हें हरखू न बनने दूंगी.....
उठ हे भारतवासी ,तुम्हें अब सोने न दूंगी ॥
उठा मन की तलवार .गैर की बन्दूक ठंडी पड़ जाये.....
घर में छिपे शिकारियोको दिन में तारे नज़र आये...
धर्म के नाम पर तेरा अनमोल खून बहने न दूंगी ॥
उठ हे भारतवासी ,तुम्हें अब सोने ना दूंगी॥
आखे खोलो भारतवासी ,,इतिहास तुम्हें ललकार रहा है ॥
जो होता है होने दो,,,, इस सपने में ,,अब उड़ने न दूंगी...
विपद मार्ग में आसानी से बहने ना दूंगी....
उठ हे भारतवासी ,तुम्हें अब सोने ना दूंगी॥
निर्भयता के मार्ग में, न घबरा अपने पाँव के छालो से ॥
तू बढता जा ..बढता जा ...नया सवेरा तेरी राहों में ........
ना घबरा ढलते आशाओं के आगे.....
टूटे पंखों में अटल उम्मीद मै भर दूंगी ....
उठ हे भारतवासी ,,तुम्हें अब सोने ना दूंगी..
तुम्हें सोने ना दूंगी.........