उदास कार्यकर्ता ,
बिजली के इंतजार में बार बार पान चबाता ......
पूरा गाव उसे कोसता , तो वो खुद को कोसता .
" १५ दिन का मज़ा , पांच साल की सजा "
होटल में खाया रोज़ सुबह का नाश्ता .......
ढाबे वाला भी खुश था , दोपहर का लंच तो वही पर होता था ..
" क्या हमारा भावी सरपंच था "
चाय पानी ,बीडी सिगरेट का भी खर्चा वह बर्दाश्त कर रहा था ..
साथ में मावा, घुटका ,घूमने के लिए मुफ्त का गाड़ी भी था ....
"शाम की तो बात पूछो मत ",
कोई थम्प्स-अप के साथ लिया ,कोई कच्चा ही पिया....
उसने खाया चिकन , तो मैंने खायी बिरयानी .....
परोसने वाला "भावी " सरपंच जो था .....
हाथ धोया बिसलेरी से ,सामने सफ़ेद रुमाल भी था .....
"मै ही हूँ वो कार्यकर्ता"
१५ दिन का मज़ा ...............
मेरे पूरे गाव को पांच साल की सजा .............
मेरे पूरे गाव को पांच साल की सजा .............
नंदिनी पाटिल
hahaha ..... wah wah kya baat hai ek dam sahi sahi lika hai apne di ....yadi yah sab log samje jaye na tho pata nahi aapna india kaha ka kaha pucha jaye.....it well said and nice thought....
ReplyDeletegood luck
nice one keep it up...
ReplyDeleteVery nice..
ReplyDeleteSAHI LIKHA HAI NANDINI JI AAPNE EKDUM SACH AUR SABSE BADI BAAT K AAP AC AUR MAHALO ME RAHNE K BAAD GRAMEEN AUR JANTA K DUKH DARD KO SAMJH KAR APNE LEKH ME SHAAMIL KAR RAHI HAI YE SABSE BADI BAAT HAI HAM JIASE CHOTE, DABE KUCHLE GAREEEB LOGO K LIYE. THX®ARDS ZIA
ReplyDeleteNandini ji ap ko nai poem lekhne ki dher saari shubkamna . and apne apne es poem ke madhyam se pure gaw ka dukh bataya he apko bhout bhaout subhkamna............
ReplyDeletenandni ji bhout khub maza aa gya apke poem se . bhagwan apko lekhne ke leye or v topic de................
ReplyDeleteवाह वाह दी, कितना सुन्दर रेखांकन किया है. बधाई दी.
ReplyDeleteवाह बेहद सुन्दर चित्रण ................शुभकामनायें आपको !!
ReplyDeleteवाह बेहद सुन्दर चित्रण ................शुभकामनायें आपको !!
ReplyDeletewooooo ! Great nannni...
ReplyDeleteWith fun kadvi sacchayi...... Kash ye karykarta log samz paye.... !
वाह!! सही बात कही है....आज का मतदाता ऐसा ही हो गया है..
ReplyDeleteHi sis..nice poem..very bitter truth about our country...u written,,Apne karya karthyae ..only for debate no work..
ReplyDeletenice poem ,no doubt its reality,keep it up mam
ReplyDeleteउदास कार्यकर्ता ,
ReplyDeleteबिजली के इंतजार में बार बार पान चबाता ......
पूरा गाव उसे कोसता , तो वो खुद को कोसता .
" १५ दिन का मज़ा , पांच साल की सजा "
होटल में खाया रोज़ सुबह का नाश्ता .......
ढाबे वाला भी खुश था , दोपहर का लंच तो वही पर होता था ..
" क्या हमारा भावी सरपंच था "
चाय पानी ,बीडी सिगरेट का भी खर्चा वह बर्दाश्त कर रहा था ..
साथ में मावा, घुटका ,घूमने के लिए मुफ्त का गाड़ी भी था ....
"शाम की तो बात पूछो मत ",
कोई थम्प्स-अप के साथ लिया ,कोई कच्चा ही पिया....
उसने खाया चिकन , तो मैंने खायी बिरयानी .....
परोसने वाला "भावी " सरपंच जो था .....
हाथ धोया बिसलेरी से ,सामने सफ़ेद रुमाल भी था .....
"मै ही हूँ वो कार्यकर्ता"
१५ दिन का मज़ा ...............
मेरे पूरे गाव को पांच साल की सजा .............
didi u r great
ReplyDeleteमेरी प्रिय बहन नंदनी जी , आपने इतनी बड़ी बाते अपने सुंदर कविता के माध्यम से लिखी हैं , जो की एक ग्रामीण व्यक्ति ही जानते हैं , यह तो पंचायती राज व्यवस्था का दोष हैं , आपने अपनी कविता से उनलोगों तक पहुँच बनाई हैं जहाँ कोई देखना नहीं चाहते हैं , आप इसी तरह लोगो को जगाते रहिये , आपको इतनी सुंदर पोस्ट लिखने के लिये बहुत बहुत धन्यबाद .....
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी है ,बार बार पढाने योग्य भी है ...इसमे यह भी कीजिए
ReplyDeleteघर का खर्चा भी अभी वही उठा रहा था
बेटी क्या ब्याह और ज़मीन का ऋण चुकाने कि आरजू जाता रहा था...
ये नहीं भी है फिर भी बहुत सुगठित और सत्य के शरीर सी है
बहुत बहुत आभार और अभिनन्दन
Nandini jee app achhe kavita karate hai, I read gone through your blog, It's really nice blog.
ReplyDeleteutam-***
ReplyDeletepuri tarah aapne chunav ki satyata ko parkha hai bilkul isi prakar hota hai chunav
ReplyDeleteHi,
ReplyDeleteNandini madam nice poems good luck...............
वाह वाह काश में भी आपके जेसी कोई कविता राजनीती पर लिख पता
ReplyDeleteवाह वाह, काश में भी राजनीती पर आपकी तरह बढ़िया लिख पता
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