नंदन-वन की नंदिनी

नंदन-वन की नंदिनी

Tuesday, May 24, 2011

"MASUM SAWAL "

   छोटे  बेटू के   आखों   में 
               कुछ  सवाल  थे 
कुछ  होंगे   कहानी वाले 
      मेरे ये  खयाल   थे  ............

नन्हे नन्हे  आखों में ..
      कुछ अदभुत  सी  रोशनी  थी ....
पन्ने  पलट ते रहे  पलट ते रहे.............
 आखिर में मै  बी  कुछ देर 
  स्तब्ध  थी ................................................


 माँ  हिंसा  और नफरत की   "माँ "     कौन है ?????????
 है   कहा   उसका घर ??/
जाट पात , मंदिर मस्जिद .....
है  बस     नफरत  ही नफरत  
क्यों   इसकी यही पहचान   है  ????????/

माँ  हिंसा  और नफरत की " माँ  " कौन   है ???????????



बैर  का जवाब  बैर  ही  
    क्यों होता है........????
ना   सुकून  ना  शांति ..
फटी सपनो की  चादर में  
  वो रोज़ क्यों सुलगता है ...???????
बैर के गले में  शांति  की माला ...
सोचो  कितना  सुकून है ........
माँ   हिंसा  और नफरत की   " माँ " कौन है..??????

माँ   , 
धर्मो  के मसीहा  से  
मै भारत का  भविष्य  .....मेरा सवाल है................
दुनिया अगर  रंगमंच ....
हम सारे  खिल्लोने  

बैर  के बदले  चुटकी भर 
प्रेम भर दे  
          हर इन्सान में ....

ना कोई खून खराबा   ना कोई  शिकवा 
ना कोई मन्नत   होगी 
         तेरे  आगन  में ..........!!!

Wednesday, April 27, 2011

NAMUMKIN JEET...................

भ्रष्टाचार   हो  या ,
  ईमानदारी   हो  ,
हम जो बीज  बोते है ,
  वही उगता है ....
बस समज ने में    साल निकल जाता है .....

अन्ना ने सोचा चलो लड़ते है ,
घपलो की खेती में सुनामी लाते है    

सुखराम जी का बी एक फरमान निकला ,
चलो ..अन्ना के साथ जंतर मंतर ...
न कोई  हथियार ,न फत्हर......

उपोषण पे तो बैटना है ..
घपलो के बाज़ार में ....

  ईमानदारी की स्थापना करना है ....

सत्य की पुकार थी ...
लड़ने का जूनून था ..
काला   पैसा लाना है लाना है........
सुखराम जी का फोन चिल्ला उठा....
हेल्लो कौन बोल रहा है.........???
सर मै...
गाववालो को फसाया है ...
कोरे कागज़ पर अंगुता बी लगवाया है ....

तिलिस्मी   मुस्कान के साथ ....
        सुखराम जी बोले..........
अभी हम भ्रष्टाचार के खिलाप ...
मोर्चे में है........

सामने घूरते  दादा जी बोले........
"सत्यमेव जयते "
सिर्फ अशोक में माथे पर लिखा है..........

भ्रष्टाचार का चेहरा नहीं होता.....
वश या वर्ग बी नहीं होता.....
जाता बी नहीं उस्सका "अस्तित्व "........

वह सर्वकालीन है ,सर्व स्तलिय है ,सार्वजनीन है .....

अगर हम खुद को जान ले......
       बदल ले..........
  दुसरे को हम खुद में ''''
देख पाए तो ...........
भ्रष्टाचार की जीत  "नामुमकिन  "  है.........

Sunday, August 8, 2010

mai kaary-kartaa.मै ही हूँ वो कार्यकर्ता

                                                       

   उदास कार्यकर्ता ,
             बिजली के इंतजार में बार बार पान चबाता ......
           पूरा गाव उसे कोसता , तो वो खुद को कोसता .
            " १५ दिन का मज़ा , पांच   साल  की सजा " 
 
 होटल  में खाया  रोज़ सुबह का नाश्ता  .......
ढाबे वाला  भी  खुश था  , दोपहर  का लंच तो वही पर होता था ..
" क्या हमारा भावी सरपंच था "

चाय पानी ,बीडी सिगरेट का भी  खर्चा  वह बर्दाश्त  कर रहा था ..
साथ में मावा, घुटका ,घूमने के लिए  मुफ्त का गाड़ी भी था ....
"शाम की तो बात पूछो  मत ",
     कोई थम्प्स-अप के साथ लिया ,कोई कच्चा ही पिया....
     उसने खाया चिकन , तो मैंने खायी बिरयानी .....
परोसने वाला "भावी " सरपंच जो था .....
हाथ धोया बिसलेरी से  ,सामने सफ़ेद रुमाल भी  था .....
"मै ही  हूँ  वो कार्यकर्ता"
१५ दिन का मज़ा ...............
मेरे पूरे  गाव को पांच साल की सजा .............

 नंदिनी पाटिल

Monday, July 19, 2010

मै भारतीय हूँ ..मै हिन्दुस्तानी हूँ.



घनी बारिश थी,टूटी छतरी थी ,
फटी चप्पलें जोड़ते हुए वह मैदान में चिपका था..
हाथ में झंडे थे ,बदन पर फटे कपडे ....
सामने गाँधी का पुतला खड़ा था..

पुतले के आगे एक बड़ा नेता, उसके सामने उसकी ही भीड़ .....

सबके चेहरे पर चिंता थी ,



बहुत सारा आवेश भी था ,
राज्य की स्थिति से बेहद उत्तेजित थे,

तालियों के साथ एक आकलन निकला ,
पर भाषियों को प्रदेश से जल्द ही भगाना होगा .....
नहीं तो स्तिथि गंभीर बनेगी ,
महिला की ओर देखते उसने जोर से घोषणा दी.....
हमारा स्वतंत्र राज्य होना ही चाहिए ....
कोई पर-प्रांतीय नहीं टिकेगा ... नहीं टिकेगा.....

मगर प्रश्न यह था......
किसी की बेटी उस राज्य की बहू थी



उस प्रदेश की बहू इसकी बेटी थी ,

वह कुली था ,वह मजदूर था ,



वह रिक्शावाला था, वह सफाई-वाला था ,
वह कारकुन था , वह अधिकारी था ,
वह संतरी था , वह मंत्री था ,
वह गुंडा था ,और वह उस भीड़ का हिस्सा था ,

अंत में उसने निर्णय लिया ....
पुतले जलाओ , उनके झंडे जलाओ ,
बसों में आग लगाओ ,दुकानों में ताले मारो 
भाषावाद , प्रांतवाद में हमें लड़ना है .....हमें लड़ना है..........
टूटी चप्पले हाथ में लेकर वह भी चिल्लाया ,



हमें लड़ना है ....हमें लड़ना है........





शराब की एक बोतल ...कुछ रुपये ..
उस की शाम आज कुछ गजब थी ...
लाठी डंडे बहुत बरसे ,अब वह पूरा नंगा था,



दूसरे राज्य से बेटी ने फोन किया 


क्या हुआ बापू ? मै यहाँ बहुत खुश हूँ ...
वह अधमरा सा खडा था..
सभा के समापन पर,
उनकी ललकार थी.........
शहर ,राज्य में एक और दंगा पैदा करो ..
ताकि धर्म ,प्रान्त, भाषा के संकट पर ,
गरमा गरम माहौल बन जाये ..

उसने फोन पटका ,,,,,,जोरसे चिल्लाया .......

मै भारतीय हूँ ..
मै हिन्दुस्तानी हूँ...

नंदिनी पाटिल ..

Wednesday, July 14, 2010

उठ हे भारतवासी ...........

उठ  हे भारतवासी ,तुम्हें  अब सोने न दूंगी ॥
कविता के शब्दो से क्रांति तुममें मै भर दूंगी ...

न घबरा, ढलती  आशाओं के  आगे ,
टूटे पंखों में अतल उम्मीद मै भर दूंगी...

बेईमानी के पक्षधर बाँहें  फैलाए  है ॥
राजनीति के मीठे  फल तो, कदम कदम पे सजाये है॥
कल्पना की मीठी  गोद में , विपत्ति  मै न होने दूंगी ॥
उठ हे भारतवासी ,तुम्हें  अब सोने न दूंगी॥

तोड़ दे मन की परतंत्रता ,कभी स्वतंत्र  बन के जीले ॥
स्वाभिमान का मीठा  फल एक बार तू चख  ले...
हथियारो के जंगल में तुम्हें  , खिलौना बनने न दूंगी...
उठ हे भारतवासी , तुम्हें  अब सोने न दूंगी...

कुर्सी  के आगे तुम्हें  बिंदु नहीं बनना है.....
उठो, जागो सिन्धु बन के उन्हें मिटाना है ॥
चुनाव ,महगाई  ,बंद , मोर्चे में ... तुम्हें  हरखू न  बनने दूंगी.....
उठ हे भारतवासी ,तुम्हें  अब सोने न दूंगी ॥

उठा मन की तलवार .गैर की बन्दूक ठंडी पड़ जाये.....
घर में छिपे शिकारियोको दिन में तारे नज़र आये...
धर्म के नाम पर तेरा अनमोल खून बहने न दूंगी ॥
उठ हे भारतवासी ,तुम्हें अब सोने ना दूंगी॥

आखे खोलो भारतवासी ,,इतिहास तुम्हें  ललकार रहा है ॥
जो होता है होने दो,,,, इस सपने में ,,अब उड़ने न दूंगी...
विपद  मार्ग में आसानी से बहने ना दूंगी....
उठ हे भारतवासी ,तुम्हें  अब सोने ना दूंगी॥

निर्भयता के मार्ग में, न घबरा अपने पाँव  के छालो से ॥
तू बढता जा ..बढता जा ...नया सवेरा तेरी राहों में ........
ना घबरा ढलते आशाओं  के आगे.....

टूटे पंखों  में अटल उम्मीद मै भर दूंगी ....
उठ हे भारतवासी ,,तुम्हें  अब सोने ना दूंगी..
तुम्हें  सोने ना दूंगी.........

-----नंदिनी पाटिल

Tuesday, June 16, 2009

क्षमा करें गाँधी हमें ....

गाँधी की आखे मुझे घूर  रही थी ...
जब मै नए सदी का हवाला दे रही थी.....

किताब बंद किया अपने नए विचारो और आखो के साथ ...
विचार मेरे गुलाम है ,नए सदी के हाथ .....

नए सदी का पाठ है - आतंकवाद का ...
चरखा  यहाँ चलता है,घोटाले घोटालो का.....

धूर्तता की जीत है ,नैतिकता की हार ,
लाचारी की चमडी है ,करो जयजयकार....


सत्ता की है आरती यहाँ,  पूजा है कुर्सी की....
प्रसाद है पैसोका , आशीर्वाद मोर्चे , हड़तालों  की....


पंडित मुल्ला दो हथियार यहाँ, पाठ  यहाँ पर दंगल का......
चरखा यहाँ चलता है , घोटाले घोटालो का.......


कदम चूमती जीत यहाँ ,नई सदी के ..कौरवों  की ....
इज्ज़त  यहाँ लुटती  है, मूल्य  और मर्यादा की .....


नई  सदी में चिंतन है, शपथ कैसे ले झूठ  की ...
नई  सदी में मनन  है, प्रतिज्ञा  कैसे ले फूट  की ..


शिकवा  करे किससे ? जब बाड़ खाए खेत  को ...
आज़ाद  भारत में  रोज  देखते ज़िंदा लाश, ज़िंदा  मौत  को ...


क्षमा करें  गाँधी हमें  ....
नई  सदी में  इंतज़ार  है आपका ...
चरखा  यहाँ चल रहा है  घोटाले- घोटालो का..


-- नंदिनी  पाटिल

Monday, April 6, 2009

तो पहला काम .-- ख़ुद को जगाना

कितना मुश्किल है खुद को बताना
कि हम एक हैं ...
और मानव धर्म एक है .....
और
सारे भारतीय ।मेरे भाई बहन हैं ...

ये प्रतिज्ञा सिर्फ
पाठशाला का एक नियम बनाना .....

नर्सरी में दाखिला लिया ..
पापा फॉर्म भर रहे थे ...

पहला सवाल था .
जाति , धर्म कौन सा ?
हिन्दू ....लिंगायत .......

पापा ...ये धर्म क्या होता है ..?
मेरा सवाल था ....

बेटा ..तुम नहीं समझोगी ..
बहुत छोटी हो .....

"आया " ने मेरी ऊँगली थामा ....
आया से मैंने पूछा .....आपका धर्म क्या है . ....?
मुस्लिम ............

ये था पहला पाठ मेरे बचपन का .....
कितना आसान हो गया है ....
खुद को बताना ...

मेरे दादा ..मेरे दादा के दादा ..उनके दादा के दादा
सभी ने यही सीखा था ..
हम सब एक है ...
मानव धर्म एक है ...

कोई तो मेरे सवालो का जवाब दो ..........?
'रामायण कहा से आया ..?
कुरान कहा से आया ..?
महाभारत कहा से आया ....?
और ये बायबिल ॥कहा से आयी ...?

कितना आसान हो गया है ..खुद को बताना
आज 'भगवान "अल्लाह "जीसस " भी लाचार है . ....
उनके नाम पर ही ॥एक दूसरे को मरोड़ रहे हैं ....

कैंडल भी बहुत जलाए ......
टी वी पर नाम भी फैलाये ....
कि ..हम लड़ेगे ....हम लड़ेगे .....
दूसरी सुबह ने देखा ...
वो खुद ही लड़ रहे है .....

मै "मारता "...तू मुस्लिम ....वो बिहारी .....
आसान हो गया है खुदको बताना

सिर्फ "दिल " से सोचो ....
"भारत मेरा देश है ...
और "भारत मेरा घर है "...
..... हम सब भाई बहन है ...

तो कैंडल भी न हो ...
लिस्ट भी न हो
ख़ुद को जगाओ .......
ख़ुद को जगाओ ......

तो आसान नहीं होगा ख़ुद को जगाना ......
तो ...पहला काम ..
ख़ुद को जगाना ......
ख़ुद को जगाना ......






नंदिनी पाटिल

Sunday, April 5, 2009

To...pehala kaam.. khud ko...jaganaa

kitna mushkil hai khood ko phasana.....
ki hum ek hai..aur manav dharam ek hai........
aur saare bhartiya...mere bhai behen hai....
ye pratidnya...sirf patshala ka ek rule hai.....
nursery me daakhilaa liya..papa form bhar rahe the...
yeh sawal thaa ..cast [dharam] kounsi hai?
hindu....lingyat.......
papa...ye dharam kya hota hai..? mera sawal tha....
beta ..tum nahi samjogi....bahot choti ho.....
"aaya" ne meri ungli thami....
aaya se maine pucha ......aap ka dharam kya hai.....?
muslim............
yeh thaa pehla paath mere bachpan ka.....
kitna aasan ho ghaya hai....khud ko phasana...

mere dada..mere dada ke dada..unke dada ke dada
sabhi ne yahi sikha ..hum sab ek hai...manav dharam ek hai...
koi to mere sawalo ka jawab do..........?
'ramayan kahan se aaya..?kuran kahan se aaya..?
mahabharat kahan se aaya....?aur ye bible ..kahan se aaya...?
kitna aasan ho ghaya hai ..khudko phasa na....
aaj 'bhagwan' 'allaah' 'jejus' bhi laachar hai.....
unke naam par hi..ek doos re ko marod rahe hai....
candle bhi bahot jalaye.......t.v.par nam bhi failaye....
ki..hum ladenge ....hum ladenge.....
dhusri subah ko dekha ...wo khud hi lad rahen hai.....
mai "maratha"...tu "muslim"....wo "bhihari".....
..... kitna aasan ho gaya hai khudko phasana.........
sirf "dil" se socho.."bharat mera desh hai"..aur "bharat mera ghar hai"...
..... hum sab bhai behan hai...
to candle bhi nako....list bhi nako.....
khudko jagao.......khudko jagao......
to aasan nahi hoga khudko..phasana......
to...pehla ..kaam..
khudko jagana ......khudko jagana.......

नंदिनी पाटिल

Saturday, March 21, 2009

क्या लिखू , मै क्या लिखू

kya likhu mai kya likhu?
kavita kounsi nai likhu?
kya is desh ka bhavish likhu?

ramayan me ka vachan likhu?
mahabharat ka sar likhu?

ganeshwari likhu.......basavshwar ke vachan likhu..
ki geeta ka updesh likhu..? kya likhu mai kya likhu?

shubhash chandra ka lalkar likhu..?
ghandi ka ghandi marg likhu..?
ambadkar ka savandvan likhu..?
ki..antki ajgar ne nigle..huve....logo ki kahani likhu...? kya likhu mai kya likhu..?
bhrstrachar likhu..?bekhri likhu..?
apno ki jalsaji likhu......padosi ka likhu...
bas,hotel,mandir,patshala me ..rakhe bomb ke bare me likhu..?
ya in sab ko khatma karne wali durga banke.....naya itihas rachu.....?
kasab likhu..?naye hatiyar likhu...?
bhart ki majbhuri likhu........?
ya roj roj phatne wale bomb ko dekhne wale mere masum bhai ke sawal ka jawab likhu.........?
kya likhu mai kya likhu......?\

kya likhu mai kya likhu ?
kavita kounsi nayi likhu?
maine manav banke janam koy liya....?
kya isi par ....ek itihas likhu?............


क्या लिखू मै क्या लिखू ?
कविता कौन सी नयी लिखू ?
क्या इस देश का भाग्य लिखू ?
रामायण के वचन लिखू ?
महाभारत का सार लिखू ?
बासवेश्वर के वचन लिखू ?
या गीता का उपदेश लिखू
क्या लिखू मै क्या लिखू ?
सुभाष चन्द्र की ललकार लिखू
या गांधी का गांधी - मार्ग लिखू
अम्बेडकर का संविधान लिखू
या आतंकी अजगर द्वारा निगले गए लोगों की कहानी लिखू ??
क्या लिखू मैं क्या लिखू ??

भ्रष्टाचार या बेबसी की कहानी लिखू
या पड़ोसी की जालसाजी की कहानी लिखू ??
होटल , बस , पाठशाला में रखे हुए बम की कहानी लिखू ?
या इन सबको ख़त्म करने वाली दुर्गा बनकर ,
नया इतिहास लिखू ??
कसब की कहानी लिखू या नए हथियार की कहानी लिखू ?
या अपने भारत की मजबूरी लिखू ?
या रोज़ रोज़ फटने वाले बम की कहानी पर
अपने मासूम भाई के सवालों के जवाब लिखू ??

क्या लिखू मैं क्या लिखू ??
क्या लिखू मैं क्या लिखू ??

कविता कौन सी नयी लिखू ?

मैंने मानव बनकर जन्म क्यूँ लिया ??
क्या इस पर लिखू ??

क्या लिखू मै क्या लिखू ??

नंदिनी पाटिल

Friday, January 16, 2009

कविता के शब्द तिलमिला उठे ....

बिखरे हुए विचारो को
शब्दों में जोड़ना था

शब्दों में जोड़कर
और एक कविता बुननी थी

पापा को देखा हाथ में रिमोट था ...
एक मिनट में दस चॅनल बदले

आतंकवादियो के साथ साथ नेता पर
भी रिमोट फेका ...

माँ ज़ोर से चिल्लाई --
ये क्या किया आपने ?

{k} वाले सीरियल से उनको भी रोना था .....
छोटा भाई भी गौर से देख रहा था ...

वैपर गन के साथ कुछ लोग खड़े थे
उनके चेहरे पर काले कपडे भी थे
और ..
पुलिस वाले भी बड़े बड़े थे ....
वो बोला ...
मुझे ये खिलौना दो ....

मैंने कलम के साथ गर्दन घुमाके पूछा ..
कौन सा वाला ...?
दोनों .......
उसकी मासूम उंगलिया .....उन आदमियों और गन पर थी

मेरी आखे .....
अगले आदेश के इंतजार में खड़ी पुलिस पर भी थी ...

मेरी कलम लड़खडाई
कविता के शब्द तिलमिला उठे ....

हां .... हां ...ये खिलोने तो है ......

सवाल था .........किसके ॥?

अब
मैंने कलम को मजबूती से उठा लिया था ....

क्योंकि ..
फिर से विचोरो को जोड़ना था .....

और एक कविता बुननी थी ....
हां , और एक कविता बुननी थी
मेरे साथ साथ आप सब को भी जगना था


नंदिनी पाटिल

Saturday, January 3, 2009

धन्यवाद kassab तेरा ..

कसाब का बड़ा सा फोटो अख़बार में था,
मुझसे बिना पूछे ही मेरा मन ,

उससे बाते कर रहा था ---

''धन्यवाद कसाब तेरा ,
दिखाया हमें तूने कि -
कोई सरकार नही बचा सकती हमें ,
हमें , ख़ुद ही खुदको बचाना है ।
तुम जैसे कसब को चुन चुन के मारना है।

धन्यवाद कसाब तेरा ,
तूने दिखाया ,
हमारे यहाँ
चुनाव
की "फील्डिंग " ही बड़ी चिंता है ।

तुम लोग हवा से आए या समंदर से आए
?
किसको पता है ?
अफसरों को मारा , कमांडोज़ को मारा
वो तो गए , उनका फ़र्ज़ था।

अगर तू किसी मंत्री को मारता तो
ज़रूर मुसीबत में फसता।
वो हमारे लिए वन्दनीय होते हैं ।

धन्यवाद कसब ,
तूने सी एस टी पर फायरिंग की,
तब देखा नही कि वहा कौन हिंदू है
,
और कौन मुस्लिम है ,
नही तो बहुत बड़ा तूफ़ान आता
ये तो तेरी मेहरबानी है।

तू डर मत,
अंतुले ने तो तुझे समर्थन किया है ।
और भी लोग करेगे।
हमको तो आदत है ,
सालो साल कचहरी में घूमने की ।

धन्यवाद कसब तेरा ,
अफज़ल गुरु और तू , कुछ दिनों बाद ,
हसते हसते अपने वतन लौटेगा ,
क्योकि मेरा देश ,
मेहमान को भगवान् मानता है ।

कसब , धन्यवाद ,
नौ तो मर गए ,
तू एक बचा ,
बाकी बीस तो सोच रहे होंगे -
अब क्या करना है ?

धन्यवाद कसब तेरा ,
हर एक भारतीय के मन में
आग
लगाने की,
और तेरे जैसे करोडो कसबो से
खुद
लड़नेवाला जूनून पैदा करने की ।''

नंदिनी पाटिल " shubh

Saturday, December 27, 2008

हाँ, ख़त्म करना है ये .खून की होली..


झील में झांका
यहाँ से .
मुस्कुराते चेहरे ने मुझे घूरा ,
मैंने भी कोशिश की ।

एक पत्ता गिरा ऊपर से ,
मै सकपका गयी ,
झील फिर से हँसी ।
अरे ..वो तो सूखा पत्ता था
बम नहीं।

थरथराते होठो से
फिर से कोशिश की .
क्या ? तूने सुना?
मेरा मुख्य सवाल था ।
हां ,जब तेरी आँखों की बूंदे
मुझमे समा गयी ,
मेरा सवाल था -क्या होगा ?
वह बोली--
" फिर से बच्चे माँ से पूछेंगे -
''माँ पापा कब आयेंगे ?''
सुनकर मैंने उसे देखने की कोशिश की ,
आँखों में पानी का परदा था।
वह बोली ..
" सीमा के उस पार वाले बच्चे भी अपनी
माँ से यही सवाल करेंगे।
निस्तेज आँखें उसे घूर रही थीं ।
अनजाने डर से ,
हवा ने मुझे जोर से हिलाया,
पत्तों के साथ।
शायद मुझे अभी....
मै डरी नहीं ,आत्मा बोली ..
" अरे वह तो आराम से सो रहा है "
अपनी कुर्सी पर ।
झील अब जोर से हस रही थी मुझ पर ,
तब मैंने कुछ सोचा -
मेरा डर मर चुका था ,
हां हां ख़त्म करना है ,
ये खून की
होली हमेशा के लिए।

--नंदिनी पाटिल